तारादेवी ने 77 दिवसीय संलेखना संथारा में मृत्यु का वरण कर रचा इतिहास



गंगाशहर, 29 सितंबर। गंगाशहर निवासी तारादेवी ने 77 दिवसीय संलेखना संथारा के बाद समाधी मरण के बाद गाजे बाजे के साथ अंतिम यात्रा नई लेन व पुरानी लेन के विभिन्न मार्गों से होती हुयी तेरापंथ भवन पहुंची। तेरापंथ भवन के सामने अंतिम यात्रा को सम्बोधित करते हुए मुनि कमल कुमार जी ने कहा कि तारादेवी ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों को साधना के पथ पर समर्पित करते हुए गंगाशहर में एक इतिहास रच दिया। उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमलकुमार जी ने प्रवचन के पश्चात तारादेवी की भव्य शोभायात्रा देखकर उनके जीवन को कलात्मक बताया तथा तारादेवी के जीवन और उनके अंतिम निर्णय की सराहना की।
पारिवारिक दायित्व: मुनिश्री ने कहा कि जीवन जीना एक कला है, और मृत्यु भी अपने आप में एक कला है, जिसे तारादेवी ने कुशलता से जीया। उन्होंने जीवनभर पहले सासू-ससुर की, फिर शासनश्री साध्वी सोमलताजी की अंत समय तक सेवा की और अपने दायित्वों का कुशलता से पालन किया।




आत्मीय संबंध: घर में सबसे छोटी बहू होने के बावजूद, उन्होंने अपने जेठ-जेठाणियों और पूरे परिवार का बहुत मान-सम्मान किया। मुनिश्री ने इसे ही संथारे का सुपरिणाम बताया कि वर्षों से न मिली उनकी सबसे बड़ी जेठाणी कमला देवी भी परिवार सहित संथारे में कई बार मिलने पहुँचीं।



सामुदायिक सहयोग: मुनिश्री ने कहा कि तारादेवी ने सबके साथ आत्मीय संबंध रखा, इसलिए केवल आरी और बैद परिवार ही नहीं, चोपड़ा परिवार भी लंबे समय तक आराधना और साधना में सहयोगी बना रहा।
पति और परिवार की सेवा
मुनिश्री ने तारादेवी के पति विजयकुमार के साहस की विशेष प्रशंसा की। उन्होंने फरमाया कि विजय ने लंबे समय तक प्रतिक्रमण और स्वाध्याय का सहारा देकर तारादेवी को उत्तरोत्तर उत्तम पथ की ओर अग्रसर किया। परिवार के सभी सदस्य—वर्षा, चारू, अजय, विपिन—सहित पूरा परिवार और आरी परिवार अंत तक सेवा में जुटा रहा।
साध्वीश्री विशद प्रज्ञाजी, लब्धियशाजी और अन्य साधु-साध्वियों ने दर्शन, मंगल पाठ और प्रवचनों के माध्यम से तारादेवी का मनोबल बढ़ाया। समुदाय के लोगों ने वैराग्यवर्धक गीतों और सेवा के माध्यम से आध्यात्मिक वातावरण बनाए रखा। विनोद चोपड़ा, ललिता बोथरा, नेमचन्द चोपड़ा, सरिता चोपड़ा, जगत बैद, महेन्द्र बैद, सुधा बैद, वीणा बैद, कान्ता नाहटा, सुनीता कमल भंसाली, सुन्दर देवी, सुशील बैद जैसे अनेकों लोग सहयोगी बने। गंगाशहर की गायक मंडली के निरंतर सहयोग से लंबे समय तक भक्ति संध्या का कार्यक्रम मनमोहक बना रहा।
अंतिम मंगल पाठ
मुनिश्री कमल कुमार जी ने दोहों का संगान कर तारादेवी को अंतिम समय में मंगल पाठ सुनाया। तारादेवी को अंतिम मंगल पाठ के समय मुनि श्रयांसकुमार जी, मुनि बिमलविहारी जी, मुनि प्रबोधकुमार जी, मुनि नमिकुमार जी और मुनि मुकेशकुमार जी सहित सभी संतों का योग भी प्राप्त हुआ।
शांतिनिकेतन सेवा केन्द्र
शांतिनिकेतन के आगे सेवा केन्द्र की साध्वियों ने केन्द्र व्यवस्थापिका साध्वीश्री विशद प्रज्ञाजी, लब्धियशाजी के नेतृत्व में गीतिका व मंगल पाठ सुनाया। सबसे खास बात या रही की रविवार रात्रि को दो साध्वियां संथारा साधिका के पास के घर में ही प्रवास किया जिससे साधिका को आध्यात्मिक सम्बल प्राप्त हुआ।
तारादेवी की प्रयाण यात्रा , अंतिम संस्कार और बैकुंठी को कंधा
अंतिम संस्कार पुरानी लेन स्थित ओसवाल शमशान घाट पर जैन संस्कार विधि से संपन्न किया गया। बैकुंठी को कंधा देने वालों में उनके पति विजय कुमार, पुत्रियाँ वर्षा और चारू, और परिवार के अन्य सदस्य शामिल थे। मुखाग्नि तारादेवी के पति विजय कुमार बैद और जेठुता महेन्द्र बैद ने दी। उनके दोहिते विदित, सम्यक विधान और गौरव भंसाली भी अंतिम क्रियाओं में शामिल हुए।
श्रद्धालुओं की उपस्थिति
तारादेवी की प्रयाण यात्रा तेरापंथ भवन से शांतिनिकेतन होते हुए शमशान घाट पहुंची। अंतिम यात्रा में तेरापंथी सभा, महिला मंडल, किशोर मंडल, युवक परिषद्, कन्या मण्डल, अणुव्रत समिति, और शांति प्रतिष्ठान के कार्यकर्ताओं ने सहभागिता की। आसपास के क्षेत्रों से भी अनेक श्रद्धालुगण तारादेवी को अंतिम विदाई देने के लिए इस यात्रा में पहुँचे।

