दो दिवसीय राजस्थानी भाषा महोत्सव सम्पन्न, जागरूकता यात्रा बनी आकर्षण का केंद्र


बीकानेर, 14 दिसंबर। सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट और मुक्ति संस्था के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय मातृभाषा महोत्सव का समापन रविवार को सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना के वातावरण में हुआ। यह महोत्सव इटली मूल के प्रसिद्ध राजस्थानी भाषा शोधकर्ता डॉ. एल.पी. तैस्सितोरी की 138 वीं जयंती के अवसर पर आयोजित किया गया था।
राजस्थानी भाषा मान्यता जागरूकता यात्रा
मुख्य आकर्षण: कार्यक्रम संयोजक राजाराम स्वर्णकार ने बताया कि महोत्सव के अंतिम दिवस का मुख्य आकर्षण राजस्थानी भाषा मान्यता जागरूकता यात्रा रही। यह यात्रा मुख्य डाकघर के आगे एक बड़ी जनसभा के रूप में सम्पन्न हुई, जिसमें बीकानेर के साहित्य जगत और स्थानीय नागरिकों की उत्साहपूर्ण भागीदारी देखने को मिली।
अतिथि: कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. नरेश गोयल (पोकरमल राजरानी गोयल ट्रस्ट के अध्यक्ष) थे, जबकि अध्यक्षता प्रसिद्ध कवि और पोस्टमास्टर विशाल भारद्वाज ने की।


संवैधानिक मान्यता समय की माँग
वरिष्ठ कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने अपने वक्तव्य में राजस्थानी भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने के महत्व पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भाषा किसी समाज की सांस्कृतिक पहचान होती है, और राजस्थानी भाषा को उसका संवैधानिक अधिकार मिलना अब समय की माँग है। उन्होंने जनसमूह से इस आंदोलन को जन-आन्दोलन का रूप देने की अपील की।


मुख्य अतिथि डॉ. नरेश गोयल ने कहा कि राजस्थानी भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि लोक-संस्कृति, इतिहास और अस्मिता की धड़कन है। उन्होंने डॉ. तैस्सितोरी जैसे विदेशी विद्वान के समर्पण का उदाहरण देते हुए कहा कि अब समय है कि राजस्थान सरकार स्वयं अपनी मातृभाषा के सम्मान के लिए आगे आए।
भाषा से जुड़ी है मिट्टी की खुशबू
अध्यक्षता कर रहे कवि विशाल भारद्वाज ने कहा कि भाषा का अस्तित्व तभी जीवित रहता है जब उसके बोलने वाले गर्व से उसे अपनाते हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थानी हमारी मातृभावना से जुड़ी हुई भाषा है, जिसमें हमारी मिट्टी की खुशबू और संस्कृति की आत्मा बसती है। उन्होंने बताया कि इस महोत्सव का उद्देश्य महज़ उत्सव मनाना नहीं, बल्कि आंदोलन की नई चेतना जगाना है। कवि-आलोचक डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने इस मान्यता को सांस्कृतिक आत्म-सम्मान का प्रश्न बताया और युवाओं से सक्रिय भागीदारी का आह्वान किया। जन-जागरूकता कार्यक्रम के समापन पर उपस्थित सैकड़ों लोगों ने राजस्थानी भाषा मान्यता के समर्थन में हस्ताक्षर कर अपना समर्थन प्रकट किया। महोत्सव का वातावरण पूरी तरह मातृभाषा प्रेम और लोक-संस्कृति की गूंज से सराबोर रहा।
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