आचार्य श्री भिक्षु का 233वां चरमोत्सव बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया

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आचार्य श्री भिक्षु का 233वां चरमोत्सव

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जोरावरपुरा, 5 सितंबर। जोरावरपुरा स्थित तेरापंथ भवन में आचार्य श्री भिक्षु का 233वां चरमोत्सव बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। यह विशेष कार्यक्रम युग प्रधान आचार्य महाश्रमण की सुशिष्या साध्वी बसंत प्रभा और उनके साथ ठाणा 4 के सानिध्य में आयोजित किया गया।
चरमोत्सव का आयोजन
कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वी श्री जी द्वारा आचार्य श्री भिक्षु के जप के साथ हुआ। साध्वी संकल्पश्री ने आचार्य भिक्षु के जीवन से जुड़ी प्रमुख घटनाओं का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि आचार्य भिक्षु को अपने जीवन में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, जिसमें भोजन और रहने के लिए जगह की कमी भी शामिल थी। उन्हें श्मशान घाट में भी रात बितानी पड़ी। साध्वी कल्पमाला और साध्वी रोहितप्रभा ने अपनी मनमोहक गीतिकाओं से श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

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साध्वी बसंत प्रभा का संदेश
साध्वी बसंत प्रभा ने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्य भिक्षु ने अपनी साधना और समता को कभी खंडित नहीं होने दिया। उन्होंने जैन धर्म की विशेषता बताते हुए कहा कि यह एकमात्र ऐसा धर्म है, जहां लोग भौतिक सुख-सुविधाओं का त्याग कर संयम का मार्ग चुनते हैं। इस अवसर पर सभा के अध्यक्ष बाबूलाल बुच्चा और महिला मंडल की मोनिका बुच्चा ने भी आचार्य भिक्षु को श्रद्धांजलि अर्पित की। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रावक और श्राविकाओं की उपस्थिति रही। रात्रि में भिक्षु मंडल द्वारा धर्म जागरण का आयोजन किया गया। इस दौरान कांतादेवी सुराणा ने 10 दिन की तपस्या करने का संकल्प लिया।
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भव्य शिक्षाएँ खोले नई दिशाएँ: आचार्य भिक्षु का 223वां चरमोत्सव संपन्न

साहूकारपेट, चेन्नई , 5 सितम्बर। तेरापंथ धर्म संघ के संस्थापक आचार्य भिक्षु का 223वां चरमोत्सव दिवस साहूकारपेट स्थित तेरापंथ भवन में साध्वी उदितयशा के सान्निध्य में श्रद्धापूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर साध्वीजी ने केंद्र द्वारा निर्दिष्ट विषय ‘आचार्य भिक्षु की अंतिम शिक्षा’ पर प्रकाश डाला और कहा कि उनकी शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं।

साध्वी उदितयशा ने आचार्य भिक्षु की अंतिम शिक्षाओं को समझाते हुए कहा कि उन्होंने ‘हेत परस्पर राखीज्यो, मत ओगुण किण रा ढूंढज्यो’ (आपस में प्रेम बनाए रखना और किसी के अवगुण न देखना) का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि यह शिक्षा केवल धर्मसंघ के लिए नहीं, बल्कि परिवार, समाज और संगठनों में भी शांति और सौहार्द बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। साध्वीजी ने ध्यान और संकल्प के माध्यम से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने और राग-द्वेष से मुक्त होकर संघ सेवा में योगदान देने का आह्वान किया।

तप और त्याग का दिन
साध्वी संगीतप्रभा ने कहा कि अगर कोई हमारे अवगुणों को बताता है, तो हमें उसे अपना हितैषी और कल्याण मित्र मानना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य कर्म के कर्ज से दूर होना होना चाहिए। साध्वी भव्ययशा ने शिक्षक दिवस का जिक्र करते हुए कहा कि जहाँ माता-पिता और शिक्षक हमें सामाजिक ज्ञान देते हैं, वहीं आध्यात्मिक संत हमें संसार सागर से पार उतरने का मार्ग बताते हैं। साध्वी शिक्षाप्रभा ने एक मधुर गीत के माध्यम से आचार्य भिक्षु की शिक्षाओं को आत्मसात करने का आह्वान किया।

इस विशेष अवसर पर सैकड़ों श्रावकों ने उपवास, आयंबिल, एकासन और पोषध जैसे तप और त्याग के अनुष्ठान स्वीकार किए। पूरे दिन तेरापंथ भवन में अखंड जप अनुष्ठान भी चलता रहा। कार्यक्रम का समापन संघगान के साथ हुआ।
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राजराजेश्वरी नगर, बेंगलुरु में तेरापंथ भवन में आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के अंतर्गत भिक्षु चरमोत्सव का आयोजन

राजराजेश्वरी नगर, 5 सितम्बर। राजराजेश्वरी नगर, बेंगलुरु में तेरापंथ भवन में आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के अंतर्गत भिक्षु चरमोत्सव का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य तेरापंथ के संस्थापक आचार्य भिक्षु के आदर्शों और शिक्षाओं को याद करना था।

साध्वी पुण्ययशा का उद्बोधन
परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण की सुशिष्या साध्वीश्री पुण्ययशाजी ने अपने मंगल उद्बोधन में आचार्य भिक्षु को अध्यात्म का शिखर पुरुष और सत्य के प्रति पूरी तरह समर्पित बताया। उन्होंने कहा कि आचार्य भिक्षु एक अद्भुत त्यागी, वैरागी और योगी पुरुष थे। उन्हीं की देन है कि आज तेरापंथ “एक गुरु, एक आचार और एक विचार” की परंपरा के साथ एक आदर्श धर्मसंघ के रूप में स्थापित है। साध्वीश्री ने आचार्य भिक्षु की अंतिम शिक्षाओं पर प्रकाश डाला, जिसमें उन्होंने शिष्यों को दीक्षा देने से पहले उनकी योग्यता परखने और परस्पर प्रेम बनाए रखने की बात कही थी।

कार्यक्रम की मुख्य बातें
साध्वी बोधिप्रभाजी ने आचार्य भिक्षु के प्रति अपने भावों को व्यक्त किया। सभाध्यक्ष राकेश छाजेड़ ने आचार्य भिक्षु के प्रति आभार व्यक्त करते हुए उन्हें मर्यादा और अनुशासन से भरा एक सुदृढ़ संघ देने का श्रेय दिया। तेरापंथ महिला मंडल ने “आचार्य भिक्षु की बोलती तस्वीरें” नामक एक रोचक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। निखिल ने “चैत्य पुरुष जग जाए” का संगान किया। इस विशेष अवसर पर, लगभग 200 उपवास, बेले-तेले, और 1620 सामायिक जैसी तपस्याएं की गईं। कार्यक्रम का संचालन साध्वी वर्धमानयशाजी ने किया, जिसका समापन संघगान और मंगलपाठ के साथ हुआ। कार्यक्रम के दौरान, “ॐ भिक्षु जय भिक्षु” का एक दिवसीय अखंड जप भी जारी रहा।
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