कृषि सब्सिडी घोटाला: करोड़ों की मशीनें बेची, हजारों किसान हुए वंचित


कस्टम हायरिंग सेंटर के नाम पर हुआ बड़ा फर्जीवाड़ा, कृषि अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी राजस्व को भारी नुकसान




चूरू, 4 जून। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में किसानों के लिए चलाई जा रही केंद्र सरकार की योजनाओं को एक बार फिर शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है। सरकारी सब्सिडी पर खरीदी गई करोड़ों की कृषि मशीनें किसानों को किराए पर देने की बजाय चुपचाप बेच दी गईं। कागजों में सब कुछ दुरुस्त दिखाने के लिए कृषि अधिकारियों से मिलीभगत कर फर्जी भौतिक सत्यापन और बिलिंग की गई। इससे न सिर्फ हजारों किसान लाभ से वंचित रह गए बल्कि सरकारी खजाने को भी करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ।


जिला मुख्यालय स्थित एक होटल में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, राष्ट्रीय तेजवीर सेना, कांग्रेस और किसान यूथ ब्रिगेड के पदाधिकारियों ने संयुक्त प्रेस वार्ता में इस बड़े घोटाले का खुलासा किया। सभी पदाधिकारियों ने कृषि मंत्री किरोड़ीलाल मीणा से पूरे प्रदेश में कस्टम हायरिंग सेंटरों की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की।
श्री बालाजी कृषि उद्योग में सामने आया घोटाला
रालोपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य राहुल जाखड़ ने बताया कि अगस्त 2018 में श्रीमती शीला देवी पत्नी महावीर रिणवाँ द्वारा रोड़ावाली के चक 4 आरआरडब्लयू में ‘श्री बालाजी कृषि उद्योग’ नाम से सेंटर खोला गया। केंद्र की योजना के तहत सेंटर को सस्ती दरों पर किसानों को कृषि यंत्र किराए पर उपलब्ध कराने थे। लेकिन वास्तविकता यह है कि एक भी यंत्र किराए पर नहीं दिया गया।
RTI से मिली जानकारी के अनुसार, केवल एक बिल – वह भी स्वयं की सास के नाम – प्रस्तुत किया गया। जबकि कागजों में 1000 किसानों को किराए पर मशीन देने की बात दर्शाई गई। इसके लिए जीएसटी बिल भी बनाए गए, लेकिन न तो किसानों को यंत्र दिए गए, न ही जीएसटी विभाग में टैक्स जमा हुआ।
मशीनें नियमविरुद्ध दो साल में ही बेच दी गईं
किसान यूथ ब्रिगेड के प्रदेश संयोजक कृष्ण रेवाड़ ने बताया कि नियमानुसार छह वर्षों तक सेंटर पर खरीदी गई मशीनों को रखना आवश्यक था, लेकिन केवल दो वर्षों में ही सभी यंत्र बेच दिए गए। 2018 में सब्सिडी से खरीदी गई मशीनें 2020 में ही बाजार में बेच दी गईं। यह शर्तों का सीधा उल्लंघन है।

कृषि सब्सिडी घोटाला: करोड़ों की मशीनें बेची, हजारों किसान हुए वंचित
सेंटर कभी चला ही नहीं, सत्यापन कागजी
रालोपा के पूर्व जिला संयोजक महेन्द्र कड़वा ने बताया कि साल 2018 से अब तक केवल दो बार ही सेंटर का सत्यापन हुआ, वह भी संचालक की अनुपस्थिति में और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर। नियमानुसार हर छह माह में सत्यापन जरूरी था। मौके पर आज भी सरसों की गिट्टी की फैक्ट्री चल रही है, सेंटर की जगह नहीं।
5 दिन में पलटा विभाग, एक ही सेंटर को पहले बताया चालू, फिर बंद
जिला कांग्रेस महासचिव परीक्षित सहारण ‘गिलवाला’ ने हैरानी जताई कि कृषि विभाग ने 18 मार्च 2025 को सेंटर को “चालू” बताया, लेकिन महज पांच दिन बाद 23 मार्च 2025 को ही उसी सेंटर को “बंद” बताया और मशीनरी बेचने की पुष्टि कर दी। यह विभागीय लापरवाही नहीं, बल्कि मिलीभगत का प्रमाण है।
जीएसटी फर्जी बिल से राजस्व को भी नुकसान
प्रगतिशील किसान नरेश सिहाग ‘मुंसरी’ और बलबीर सहारण ने बताया कि न्यू सग्गू एग्रीकल्चर वर्क्स से मशीनें खरीदने का 11 अप्रैल 2018 का बिल पेश किया गया, जिसमें ₹47,280 की जीएसटी दिखाई गई। लेकिन यह राशि विभाग में जमा नहीं हुई – यानी पूरा बिल ही फर्जी निकला।
बड़ी जांच की मांग
एडवोकेट शुभम नागपाल, तनवीर सिंह, राजेंद्र कड़वासरा और राजाराम गोदारा सहित कई किसान नेताओं ने एक सुर में कहा कि यह मामला केवल एक सेंटर का नहीं है। यदि सभी कस्टम हायरिंग सेंटरों की निष्पक्ष जांच करवाई जाए तो सब्सिडी घोटाले की परतें खुलकर सामने आएंगी।
कृषि मंत्री से सीबीआई जांच की मांग
नेताओं ने इस मामले में सीबीआई या उच्चस्तरीय स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने की मांग की है। साथ ही दोषी कृषि अधिकारियों और सेंटर संचालकों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई और सब्सिडी राशि की वसूली की भी मांग की।
जनता के मन में प्रश्न — क्या किसानों की हक की लड़ाई में सरकार कदम उठाएगी या फिर सब्सिडी की ये बंदरबांट यूं ही चलती रहेगी?