मोबाइल की लत से बढ़ रहे प्रमाद पर चिंता, गणिवर्य ने अभिभावकों से की नियंत्रण की अपील


बीकानेर, 30 अक्टूबर। गणिवर्य मेहुल प्रभ सागर . ने गुरुवार को रांगड़ी चौक स्थित सुगनजी महाराज के उपासरे में नियमित प्रवचन में कहा कि मनुष्य को मिथ्यात्व, अविरती, प्रमाद और कषायों का त्याग कर आत्म परमात्मा से योग करना चाहिए, तथा मन, वचन और कर्म से शुभ कर्म करने चाहिए। उन्होंने मिथ्यात्व को गलत विश्वास और विकृत दृष्टिकोण बताते हुए कहा कि यह कर्म बंधन का प्रमुख कारण है, और इसे छोड़कर परमात्म वाणी पर विश्वास करना आवश्यक है।




गणिवर्य ने अविरति (इंद्रियों पर नियंत्रण न रखना) को पाप के कर्म बंधन का मुख्य कारण बताते हुए कहा कि इससे जगत के प्राणी और हम दुखी रहते हैं। उन्होंने विशेष रूप से प्रमाद (लापरवाही, असावधानी व आलस्य) के त्याग पर जोर दिया, जिसे आध्यात्मिक उन्नति में बड़ी बाधा बताया। उन्होंने वर्तमान में मोबाइल की लत से बढ़ रहे प्रमाद पर चिंता व्यक्त की और कहा कि यह सभी आयु वर्ग के लोगों के जीवन को संकट में डाल रहा है, जिसके लिए अभिभावकों को प्रयास करना चाहिए।



उन्होंने काम, क्रोध, लोभ व मोह जैसे कषायों को आत्मा का सबसे बड़ा शत्रु बताते हुए कहा कि मोक्ष के मार्ग पर चलने के लिए इन पर नियंत्रण आवश्यक है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जैन धर्म में योग का अर्थ शरीर, मन और वाणी की शुद्धता, तप, ध्यान, और नैतिक सिद्धांतों की पालना है, जिससे कर्म बंधन रुकते हैं और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।








