एनआरसीसी में दुधारू ऊँटनियों के प्रबंधन और उद्यमिता विकास पर पांच दिवसीय प्रशिक्षण शुरू

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बीकानेर, 18 अगस्त। बीकानेर में भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (NRCC) ने आज ‘दुधारू ऊँटों का प्रबंधन और ऊँट डेयरी में उद्यमिता विकास’ विषय पर पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ किया। यह कार्यक्रम 18 से 22 अगस्त 2025 तक चलेगा। पशु आनुवंशिक संसाधनों पर नेटवर्क परियोजना के तहत आयोजित इस प्रशिक्षण में राजस्थान के झालावाड़, बारां, अलवर और भरतपुर जिलों से 10 ऊँट पालक भाग ले रहे हैं।
प्रशिक्षण के मुख्य बिंदु और उद्देश्य
प्रशिक्षण कार्यक्रम में दुधारू ऊँटों के प्रबंधन और डेयरी-आधारित उद्यमिता विकास के विभिन्न पहलुओं को शामिल किया जाएगा। इनमें शामिल हैं:

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  • प्रजनन एवं चयन पद्धति: ऊँटों की नस्ल सुधार और बेहतर प्रजनन तकनीकों पर जानकारी।
  • प्रबंधन तहत आंकड़ा: ऊँटों के रिकॉर्ड रखने और डेटा प्रबंधन के तरीके।
  • उष्ट्र स्वास्थ्य: ऊँटों के स्वास्थ्य संबंधी देखभाल और बीमारियों से बचाव।
  • दूध का प्रसंस्करण एवं विपणन: ऊँटनी के दूध को संसाधित करने और बाजार तक पहुंचाने के तरीके।
  • दुग्ध उत्पादों का निर्माण एवं उद्यमिता विकास: ऊँटनी के दूध से विभिन्न उत्पाद बनाने और उससे संबंधित व्यावसायिक योजनाओं की जानकारी। विशेषज्ञों द्वारा इन सभी विषयों पर गहन जानकारी प्रदान की जाएगी।

नाबार्ड की भूमिका और ऊँटनी के दूध का महत्व
मुख्य अतिथि श्री रमेश कुमार ताम्बिया, जिला विकास प्रबंधक, नाबार्ड ने ऊँट पालकों को नाबार्ड की विभिन्न योजनाओं के बारे में बताया। उन्होंने एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) और संयुक्त देयता समूह जैसे संगठन बनाने पर जोर दिया, ताकि ऊँट उत्पादों का मूल्य संवर्धन किया जा सके और उन्हें आसानी से बाजार तक पहुंचाया जा सके। उन्होंने एनआरसीसी द्वारा पिछले दो दशकों से सफलतापूर्वक चलाए जा रहे उष्ट्र दुग्ध पार्लर और बढ़ते स्वादिष्ट दुग्ध उत्पादों की मांग का भी उल्लेख किया। श्री ताम्बिया ने ऊँटनी के दूध उद्यमिता में नाबार्ड की योजनाओं से जुड़ने के लिए ऊँटपालकों को प्रेरित किया।

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कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए केंद्र के निदेशक डॉ. अनिल कुमार पूनिया ने इस प्रशिक्षण को किसानों और वैज्ञानिकों के बीच एक उपयोगी संवाद बताया। उन्होंने ऊँट पालकों को खुलकर अपनी जिज्ञासाएं साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि बदलते परिवेश में ऊँटों की आबादी और उनकी पारंपरिक उपयोगिता प्रभावित हुई है, लेकिन ऊँटनी के औषधीय दूध के महत्व को अब वैश्विक मान्यता मिल रही है, जिससे इसकी कीमत भी बढ़ रही है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस परिप्रेक्ष्य में ऊँट प्रजाति फिर से उन्नति की ओर अग्रसर होगी।

संरक्षण और उद्यमिता पर जोर
प्रशिक्षण समन्वयक डॉ. वेद प्रकाश ने कार्यक्रम की विषयवस्तु पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि इस नेटवर्क परियोजना के तहत मालवी और मेवाती ऊँट नस्लों के संरक्षण और संवर्धन के लिए ऊँट पालकों को सशक्त बनाने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने पशुपालकों को नस्ल संरक्षण और ऊँट डेयरी व्यवसाय-आधारित उद्यमिता विकास के लिए प्रेरित किया। कार्यक्रम सह-समन्वयक डॉ. सागर अशोक खुलापे ने कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की, जबकि कार्यक्रम का संचालन वैज्ञानिक डॉ. विश्व रंजन उपाध्याय ने किया।

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