ज्ञानशाला के किशोर हिमांशु कोठारी के अठाई तप का भव्य अभिनंदन

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बीकानेर, 11 अगस्त। तेरापंथ भवन, बीकानेर में आचार्यश्री महाश्रमण जी की सुशिष्या शासनश्री मंजुप्रभा जी एवं साध्वी कुन्थुश्री जी के पावन सान्निध्य में आध्यात्मिकता की लहर चल रही है। चातुर्मासिक काल में तप की रिमझिम वर्षा के अंतर्गत, ज्ञानशाला के किशोर हिमांशु कोठारी ने अठाई की तपस्या पूर्ण कर लाभ कमाया। उनके इस तपस्या के अभिनंदन का कार्यक्रम बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
तपस्या: आत्म शुद्धि का मार्ग
साध्वी मंजुप्रभा जी ने हिमांशु कोठारी की प्रशंसा करते हुए फरमाया कि उन्होंने छोटी आयु में अठाई की तपस्या करके खूब हिम्मत दिखाई है। उन्होंने तपस्या को आत्म शुद्धि का मार्ग बताया और उपस्थित परिषद को तपस्या के क्षेत्र में चरणों को गतिमान बनाने की प्रेरणा देते हुए मधुर गीत का भी संगम किया।
साध्वी कुन्थुश्री जी ने जैन आगम का उद्धरण देते हुए फरमाया, “धम्मो मंगलं मुक्किटं अहिंसा संजमो तवो” अर्थात धर्म, अहिंसा, संयम और तप मंगलमय हैं। उन्होंने समझाया कि तप वह है जो आठ कर्मों को तपाता है। तप शरीर को कृश करता है और भीतर ऊर्जा पैदा करता है, जो हमारे सिर की ओर प्रवाहित होती है, जिससे मस्तिष्क की क्षमता बढ़ती है। उन्होंने शारीरिक क्षमता के साथ आत्मबल और मनोबल की आवश्यकता पर जोर दिया। साध्वी श्री जी ने बताया कि जो लंबी तपस्या करते हैं, वे सर्वप्रथम अपनी रसना इंद्रिय पर विजय प्राप्त करते हैं, क्योंकि तपस्या सभी इंद्रियों की शुद्धि करती है। उन्होंने हल्का भोजन करने और उनोदरी (कम खाने) को भी तपस्या का एक रूप बताया।

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तपस्या का फल: उपवासों का महालाभ
साध्वी कुन्थुश्री जी ने तपस्या के अतुलनीय लाभ को बताते हुए फरमाया कि किस प्रकार एक व्यक्ति बेला (दो उपवास) से पांच उपवास का लाभ प्राप्त करता है। इसी श्रृंखला में, तेले (तीन उपवास) से 25 उपवास, चौले (चार उपवास) से 125 उपवास, पंचोले (पांच उपवास) से 625 उपवास, छट्ठ (छह उपवास) से 3125 उपवास और सात (सात उपवास) से 15625 उपवास का लाभ प्राप्त होता है। उन्होंने विशेष रूप से बताया कि अठाई (आठ उपवास) की तपस्या करने से 78,125 उपवास का महालाभ कमाया जा सकता है। ऐसे फलदायी तप की आराधना से आत्मा निर्मल बन जाती है।

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अभिनंदन समारोह और सहभागिता
साध्वी श्री जी ने हिमांशु द्वारा अठाई तप करके कोठारी कुल का गौरव बढ़ाने की अनुमोदन की। इस तप अभिनंदन कार्यक्रम में शांत भूरा और मंत्री रेणु बोथरा सहित आदि महिला मंडल ने रोचक प्रस्तुतियाँ दीं। कोठारी परिवार ने मधुर गीत का सामूहिक संघान किया। नन्हे-नन्हे बच्चों मोक्ष, ऋषिता और मौलिक ने लघु संवाद के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। तपस्वी भाई की दादी लीलाबाई कोठारी ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। सुंदरलाल झाबक ने अपने विचार साझा किए।

साध्वी वृंद ने सामूहिक गीत “तपस्या है जीवन का मीत, मंजिल मिल जाए रे” को स्वर दिया, जिससे वातावरण और भी भक्तिमय हो गया। कार्यक्रम का कुशल संचालन साध्वी आलोक प्रभा जी ने किया। यह आयोजन न केवल हिमांशु की तपस्या का सम्मान था, बल्कि सभी उपस्थित लोगों के लिए आध्यात्मिकता और आत्म-अनुशासन की प्रेरणा का स्रोत भी बना।

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