प्रेक्षाध्यान: ध्यान का एक अभिनव प्रयोग



प्रेक्षाध्यान: ध्यान का एक अभिनव प्रयोग




जैन परंपरा में प्रेक्षाध्यान एक प्राचीन, विशिष्ट और अभिनव ध्यान-पद्धति है। प्राचीन जैन ग्रंथों से खोजकर, इसका पुनरुद्धार कर और नए प्रयोगों के साथ इसे आधुनिक युगानुकूल बनाकर श्वेतांबर तेरापंथी जैनाचार्य श्री तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञ और आचार्य श्री महाश्रमण ने मानव समाज के लिए अतुलनीय योगदान दिया है। इसकी विशिष्टता, विरलता और गहन उपलब्धियों के कारण इसे अभिनव कहा जाता है।


प्रेक्षाध्यान का अर्थ
‘प्रेक्षा’ शब्द संस्कृत की ‘ईक्ष’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है ‘देखना’। प्र+ईक्षा=प्रेक्षा, अर्थात् गहराई से देखना। यह विपश्यना के समान है, जिसमें आत्मा द्वारा सूक्ष्म आत्मा, मन द्वारा सूक्ष्म मन, और स्थूल चेतना द्वारा सूक्ष्म चेतना को देखने की साधना की जाती है। ‘देखना’ ध्यान का मूल तत्व है, इसलिए इस पद्धति को प्रेक्षाध्यान कहा जाता है।
चेतना का सामान्य अनुभव तो किया जा सकता है, पर उसे देखना प्रेक्षाध्यान की विशेषता है। भावनाओं को महसूस करने के बजाय उन्हें देखने की साधना भी प्रेक्षाध्यान है। इसके दो सूत्र हैं: ‘जानो और देखो’। विचारों और चिंतन का पर्यालोचन कर उन्हें देखने का अभ्यास करना ही प्रेक्षाध्यान है।
प्रेक्षाध्यान का आधार
जब हम देखते हैं, तब सोचते नहीं; और जब सोचते हैं, तब देखते नहीं। दोनों एक साथ करने से कोई भी कार्य पूर्णता से नहीं हो पाता। विचारों के अनंत सिलसिले को रोकने और कल्पना के चक्रव्यूह को तोड़ने का सशक्त उपाय है ‘देखना’। अपने भीतर स्थिर होकर विचारों, शरीर के आंतरिक प्रकंपनों और सूक्ष्म शरीर को देखने की प्रक्रिया प्रेक्षाध्यान है। जो भीतरी सत्य को देख लेता है, वह बाहरी सत्य को भी देखने में सक्षम हो जाता है। प्रेक्षाध्यान में केवल चैतन्य सक्रिय होता है। जो प्रेक्षक है, वह ‘द्रष्टा’ है और उसका दृष्टिकोण बदल जाता है। मध्यस्थता और तटस्थता प्रेक्षाध्यान का स्वाभाविक परिणाम है।
प्रेक्षाध्यान के उद्देश्य
प्रेक्षाध्यान के माध्यम से निम्नलिखित लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है:
- सत्य की खोज
- आध्यात्मिक चेतना का विकास
- सुख-दुख, प्राप्ति-अप्राप्ति, लाभ-हानि, और जन्म-मृत्यु के बीच संतुलन
- स्व और पर के बीच सामंजस्य
- स्वभाव परिवर्तन
- व्याधि, आधि और उपाधि से मुक्ति
- उत्तम स्वास्थ्य और मानसिक शांति
- अतींद्रिय ज्ञान की प्राप्ति
प्रेक्षाध्यान में आठ मुख्य प्रयोग हैं:
- कायोत्सर्ग (शवासन): पूर्ण विश्राम की अवस्था।
- अंतर्यात्रा: चेतना की आंतरिक यात्रा।
- श्वास प्रेक्षा: आती-जाती सांसों को देखने की साधना।
- शरीर प्रेक्षा: मानसिक चक्षु से शरीर के अंगों को देखना।
- चैतन्य-केंद्र प्रेक्षा: चेतना के स्रोत और केंद्र को देखने की साधना।
- लेश्या ध्यान: शरीर और मन के आभा मंडल के रंगों को देखना।
- अनुप्रेक्षा: स्वभाव परिवर्तन के लिए संकल्प लेना और उन्हें देखना। प्राचीन ग्रंथों में 12-16 अनुप्रेक्षाएं थीं, जिन्हें आचार्य श्री तुलसी और आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने बढ़ाकर 30 कर दिया। यह पुरानी आदतों को मिटाने और नए संस्कार बनाने का प्रभावी उपाय है।
- भावना: सकारात्मक भावों का विकास।
सहायक प्रयोग
1आसन 2प्राणायाम 3 ध्वनि 4मुद्रा
विशिष्ट प्रयोग
- वर्तमान क्षण की प्रेक्षा
- विचार प्रेक्षा
- अनिमेष प्रेक्षा
वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक आधार
प्रेक्षाध्यान केवल आध्यात्मिक साधना नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी प्रभावी है। यह शरीर के स्नायु और अंत:स्रावी ग्रंथियों के माध्यम से कार्य करता है। अवचेतन मन के स्तर पर यह गहन एकाग्रता और निष्ठापूर्ण अभ्यास से संभव है। प्राणायाम, जो स्वयं एक कठिन साधना है, प्रेक्षाध्यान का केवल एक माध्यम है। भावनाओं और अहसासों को देखने की प्रक्रिया कल्पना को यथार्थ में बदलने की साधना है।
प्रेक्षाध्यान के लाभ- प्रेक्षाध्यान से चार प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं:
- भावात्मक लाभ:
कषायों (क्रोध, मान, माया, लोभ) की कमी
स्वभाव और दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तन - मानसिक लाभ:
एकाग्रता और मानसिक संतुलन
धैर्य, स्मरणशक्ति, चिंतन-शक्ति, और कल्पनाशक्ति में वृद्धि
सकारात्मक सोच और निर्णायक शक्ति का विकास - शारीरिक लाभ
रासायनिक परिवर्तन
रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि
शारीरिक क्रियाओं पर नियंत्रण - व्यावहारिक लाभ
कार्यक्षमता में वृद्धि
व्यवहार में स्थिरता और मधुरता
अनासक्ति, मोहमुक्ति, और सृजनात्मकता का विकास
निष्कर्ष
प्राचीन ग्रंथों से प्रेक्षाध्यान को खोजकर, उसका पुनरुद्धार कर और आधुनिक प्रयोगों के साथ इसे समकालीन बनाकर आचार्य श्री तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञ और आचार्य श्री महाश्रमण ने मानव समाज को अनुपम उपहार दिया है।सैकड़ों साधु – साध्वियां , समण श्रेणी , प्रेक्षा प्रशिक्षक , साधक व श्रावक समाज इस ध्यान पद्धति को जन- जन तक पहुँचाने में तन – मन और धन से लगे हुए हैं। यह ध्यान-पद्धति अनंत लाभकारी है, बशर्ते इसे उचित विधि से नियमित साधा जाए। प्रतिदिन सुबह या रात्रि को प्रेक्षाध्यान करने की आदत बनावें। प्रेक्षाध्यान न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है, बल्कि मानसिक, शारीरिक और व्यावहारिक विकास का भी सशक्त साधन है।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरे विश्व के विभिन्न भागों में प्रशिक्षिण शिविरों के माध्यम से प्रेक्षा ध्यान का उल्लेखनीय कार्य हो रहा है।
सम्पादकीय – जैन लूणकरण छाजेड़