देश भर में अणुव्रत चेतना दिवस पर हुए कार्यक्रम



व्रत सुरक्षा कवच है- मुनिश्री कमल कुमार जी




बीकानेर, 24 अगस्त। पर्युषण पर्व का पाँचवाँ दिन गंगाशहर के तेरापंथ भवन में ‘व्रत चेतना दिवस’ के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर तपोमूर्ति मुनि श्री कमल कुमार जी ने अपने प्रवचन में व्रत के महत्व पर प्रकाश डाला। मुनि श्री ने कहा कि व्रत एक सुरक्षा कवच की तरह है। जो व्यक्ति अपने स्वीकृत व्रतों का दृढ़ता से पालन करता है, वह हर समस्या से बच सकता है। उन्होंने चरित्र धर्म और उपासना धर्म के बीच के अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि जहाँ उपासना सीमित समय के लिए होती है, वहीं चरित्र धर्म का पालन जीवनभर किया जा सकता है। उन्होंने सभी को श्रावकों को 12 व्रतों को अपनाने की सलाह दी, जिससे उनका श्रावकत्व पुष्ट हो सके।



मुनि श्री ने श्रावक और साधु की तुलना रत्नों की माला से करते हुए कहा, “साधु व श्रावक दोनुं रत्ना री माला है , ” एक मोटी दुजी नान्ही रे”। इसका अर्थ है कि साधु और श्रावक दोनों ही रत्न हैं, एक महाव्रती होने से बड़ी माला है और दूसरा अणुव्रती होने से छोटी, लेकिन दोनों ही अनमोल हैं। उन्होंने अहमदाबाद में हुए हालिया विमान हादसे का उदाहरण देते हुए व्रतनिष्ठा का महत्व समझाया। उन्होंने बताया कि उस विमान में मौजूद कुछ जैन यात्री, जो मांसाहारी भोजन का त्याग कर चुके थे, अस्पताल से बाहर भोजन करने गए थे। इसी दौरान दुर्घटना हो गई और वे बच गए, जबकि मांसाहारी भोजन करने वाले लोग मारे गए। यह घटना दर्शाती है कि व्रतनिष्ठा किस तरह व्यक्ति को संकट से बचा सकती है।
मुनि श्रेयांश कुमार जी और मुनि मुकेश कुमार जी ने गीत प्रस्तुत किए। तेरापंथ युवक परिषद ने ‘सम्यक दर्शन कार्यशाला’ के बैनर का अनावरण किया, जिसके साथ मुनि श्री ने लोगों को जुड़ने का आह्वान किया।कार्यक्रम में कई तपस्वियों ने उपवास, बेले, तेले और चोले की तपस्याएँ कीं। श्रीमती तारा देवी बैद ने अपनी 42वीं दिन की तपस्या और मुनि श्री नमि कुमार जी ने 33वें दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।
अणुव्रत समिति के प्रतिभागियों ने बीदासर में आयोजित प्रतियोगिता में 5 पुरस्कार जीतकर गंगाशहर का नाम रोशन किया उनको मुनिश्री ने साधुवाद दिया।
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अणुव्रत चेतना दिवस पर साध्वी उदितयशा जी ने दिया नैतिक जीवन का संदेश
चेन्नई, 24 अगस्त. साहूकारपेट में जैन तेरापंथ स्कूल में पर्युषण पर्व का पाँचवाँ दिन ‘अणुव्रत चेतना दिवस’ के रूप में मनाया गया। इस मौके पर साध्वी श्री उदितयशा जी ने अपने प्रेरक उद्बोधन में कहा, “अणुव्रत है उजाला, तुलसी का उपकार।”अणुव्रत का महत्व पर विचार व्यक्त करते हुए साध्वी श्री ने नैतिक जीवन में बाधक तीन मुख्य समस्याओं पर ध्यान आकर्षित किया:
विलासिता: अत्यधिक सुख-सुविधाओं की लालसा।
अल्प आय – बहु व्यय: कम कमाई के बावजूद ज्यादा खर्च करना।
कृत्रिम अपेक्षाएँ: स्वाभाविक ज़रूरतों की बजाय बनावटी इच्छाओं को अधिक महत्व देना।उन्होंने कहा कि जब तक व्यक्ति इन बिंदुओं पर विचार नहीं करेगा, तब तक नैतिक और आध्यात्मिक विकास संभव नहीं है। साध्वी श्री ने भगवान महावीर के 16वें भव पर भी प्रकाश डाला।
अणुव्रत: असांप्रदायिक आंदोलन
साध्वी श्री संगीत प्रभा जी ने बताया कि अणुव्रत आंदोलन की शुरुआत गुरुदेव तुलसी ने नैतिक उत्थान के लिए की थी। उन्होंने कहा कि अणुव्रत सभी धर्मों को एक साथ जोड़ता है और यही इसकी असांप्रदायिकता की पहचान है।
इस अवसर पर साध्वी भव्ययशा जी और साध्वी शिक्षाप्रभा जी ने साध्वी उदितयशा जी द्वारा रचित एक गीत भी गाया। साध्वी भव्ययशा जी ने 16वें तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ के पूर्व जन्म की ब्रह्मचर्य साधना का जिक्र करते हुए बताया कि उनके स्मरण से विघ्न-बाधाएँ दूर होती हैं।