गंगाशहर में तारादेवी बैद ने 55 दिन की तपस्या के बाद तिविहार संथारा प्रत्याख्यान किया

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तारादेवी बैद ने पचखा तिविहार संथारा, संथारे की खबर सुनकर दर्शनार्थियों का तांता लगा 
गंगाशहर 06 सितम्बर । उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि श्री कमल कुमार जी ने अपने संसार पक्षीय अनुज भ्राता विजय की धर्मपत्नी तारादेवी बैद को 55वें दिन की तपस्या में आचार्य श्री महाश्रमण जी की आज्ञानुसार चारतीर्थ के मध्य तिविहार संथारे का प्रत्याख्यान  दोपहर 2 . 31 बजे  करवाया। मुनिश्री ने पहले उनकी तथा पारिवारिक जनों की अनुमति भी प्राप्त की। पीहर और पारिवारिक जनों के अलावा समाज के प्रतिष्ठित लोगों का तांता लगा हुआ था। तारादेवी की दृढ़ आस्था को देखकर सभी नतमस्तक थे। मुनिश्री ने बताया कि जीवन में अनेक संथारे करवाये परंतु 55 की तपस्या में संथारा प्रत्याख्यान (संकल्प) करवाने का यह प्रथम अवसर है। उन्होंने बताया कि शासनश्री मुनिश्री गणेशमलजी स्वामी व शासनश्री साध्वीश्री सोमलताजी को भी संथारा प्रत्याख्यान (संकल्प) करवाने का काम पड़ा। अनेक साधुसाध्वियों को संथारे करवाये। भाई बहनों के तो प्रायः प्रत्याख्यान (संकल्प) करवाते ही रहते हैं।

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तारादेवी बैद ने तपस्या के प्रथम दिन ही यह संकल्प कर लिया कि मुझे अब आगे ही बढ़ना है और मैं निरंतर दर्शन देता रहता हू। इनकी भावना उत्तरोत्तर विकासोन्मुख देखता हूँ। इस अवसर पर शासनश्री साध्वी श्री मधुरेखाजी भाभी साध्वी विनम्रयशा जी सहित अन्य को भी याद किया।

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गंगाशहर में तारादेवी बैद ने 55 दिन की तपस्या के बाद तिविहार संथारा प्रत्याख्यान किया

सेवाकेन्द्र व्यवस्थापिका साध्वी विशदप्रज्ञा जी लब्धियशाजी ने भी अपने हद्योदगार व्यक्त किये मुनिश्री श्रेयांसकुमार जी ने भी अपनी भावना व्यक्त की, साधु साध्वियों नें गीतों की प्रस्तुति की। तारादेवी के पति विजय बैद ने गुरुदेव के संदेश का वाचन किया।

प्रत्याख्यान (संकल्प) के समय में जैन लूणकरण छाजेड़, अमरचन्द सोनी, नवरत्न बोथरा, जतन संचेती, पवन छाजेड, कमल भंसाली, महेन्द्र बैद, सम्पत बाफना, हनुमान सेठिया, बच्छराज नाहटा, सुशील बैद, विनोद चोपड़ा, दीपक आंचलिया, धर्मेन्द्र डाकलिया, श्रीमती प्रेम बोथरा, मिनाक्षी आंचलिया, बिन्दू छाजेड़, रेखा चोरड़िया, वर्षा व चारू (दोनों पुत्रियां ) सपरिवार उपस्थित थी पीहर पक्ष से माणकचन्द आरी का परिवार भी उपस्थित था। संथारे की खबर सुनकर दर्शनार्थियों का तांता लग गया है। यह घटना तेरापंथ समाज में आध्यात्मिक साधना की गहनता और दृढ़ इच्छाशक्ति का एक उदाहरण बन गई है।

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