देशभर में तेरापंथ समाज ने आज वाणी संयम दिवस मनाया



अनावश्यक वाणी व योग का प्रयोग न करना ही मौन है – साध्वी उदितयशा जी




चेन्नई , 23 अगस्त। तेरापंथ जैन विद्यालय में पर्यूषण पर्व के चतुर्थ दिन “वाणी संयम दिवस” के अवसर पर साध्वी उदित यशा जी ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा हमारे आचार्यो ने मौन की बड़ी सुंदर परिभाषा दी है कि पुद्गल के प्रति तृप्ति ही वास्तविक मौन है।
मौन का अर्थ ज्ञान भी है।जो ज्ञानी है ,योगी है,वही मौनी है क्योंकि उनका पुद्गल के प्रति आकर्षण नहीं होता। नाम,प्रशंसा व ख्याति भी पौद्गलिक है। जिसके मन में इनकी आकांक्षा नहीं होती वहीं मौनी है।
साध्वी संगीत प्रभा जी ने भगवान ऋषभ के पूर्व भव की चर्चा करते हुए धन्ना सार्थवाह के भव में सम्यक्त्व प्राप्ति का वर्णन करते हुए सुपात्र दान का महत्त्व बताया।
साध्वी भव्ययशा जी ने भगवान महावीर की वाणी को उद्धृत करते हुए कहा- बोलने न बोलने का विवेक जरूरी है।बिना पूछे ना बोले, पूछने पर असत्य ना बोले, और जब तक हम समर्थ – पुष्ट न हो तब तक नहीं बोलना चाहिए। यदि बोलना न बोलने से ज्यादा महत्वपूर्ण हो तभी बोले।
साध्वी भव्ययशा जी एवं साध्वी शिक्षाप्रभा जी ने गुरुदेव तुलसी के गीत “राखजो बस में सदा जुबान” की सुंदर प्रस्तुति भी दी।
साध्वी संगीत प्रभा जी ने निर्दोष पौषध के संदर्भ में श्रावकों को कुछ विशेष बिंदुओं पर सावधानी बरतने का सुझाव देते हुए कार्यक्रम का कुशल संयोजन किया।
पर्यूषण पर्व के अवसर पर तेरापंथी सभा चेन्नई द्वारा आवासीय पर्युषण महासाधना शिविर का आयोजन भी किया जा रहा है शिविर में लगभग 90 साधक अपनी सहभागिता दर्ज करवा रहे हैं। महिलाओं एवं पुरुषों द्वारा अष्टदिवसीय नमस्कार महामंत्र जप अखंड रूप से गतिमान है।


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मौन सोना है,बोलना चांदी है- साध्वी मंजू प्रभा जी
बीकानेर , 23 अगस्त। बीकानेर तेरापंथ भवन में महा तपस्वी महामनस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्या शासन श्री साध्वी मंजू प्रभा जी एवं शासन श्री साध्वी कुंथु श्री जी के सानिध्य में पर्वा धिराज पर्युषण की आराधना अनवरत रूप से चल रही है पर्युषण पर्व का चतुर्थ दिवस वाणी संयम दिवस के रूप में निर्धारित है परिषद को उद्बोधन देते हुए कहा शास्त्र का रों ने चार प्रकार की भाषा बतलाई है l सत्य भाषा, असत्य भाषा, मिश्र भाषा, व्यवहार भाषा l सत्यं ब्रुयात प्रियं ब्रुयात सत्य भाषा भी प्रिय सत्य बोले, कटु सत्य न बोले l कब बोले,कैसे बोले,कितना बोले, ये भाषा के विविध पहलू हैं l वाणी चंचलता का हेतु है l यदि वाणी नहीं होती तो हम सामाजिक जीवन में किसी भी विषय की अभिव्यक्ति नहीं दे सकते l भाषा का प्रयोग चिंतनपूर्वक होना चाहिए l
मौन से ऊर्जा का संचय होता है l The rest is silent मौन विश्राम है l मौन साधना का एक अंग है मौन से व्यक्ति अंतर्मुखी होता है जीवन में अनेक प्रसंग ऐसे होते हैं जहां मौन रहना श्रेयस्कर होता है साध्वी श्री जी ने आगे भगवान महावीर का 16वां भव विश्वभूति का विशेष विस्तार से विवेचन किया l उसके स्वाभिमान पर ठेस लगने से वह दीक्षा स्वीकार करता है संसार के विचित्रता का चिंतन करता है और स्वयं को विशिष्ट तप साधना में संलग्न करता है l
साध्वी संबोधयशा जी ने वाणी संयम पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा व्यक्ति की वाणी समस्या भी बन सकती है और समाधान भी बन सकती है l साध्वी वृंद ने सामूहिक स्वर में वाणी का संयम करना जरूरी गीत का संगान किया l
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