धर्म, दर्शन, दया का संगम: खरतरगच्छ की अनुपम गाथा – गणिवर्य मेहुल प्रभ

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बीकानेर, 30 जुलाई। गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणि प्रभ सूरीश्वरजी के आज्ञानुवर्ती गणिवर्य श्री मेहुल प्रभ सागर , मंथन प्रभ सागर, बाल मुनि मीत प्रभ सागर, साध्वी दीपमाला श्रीजी और शंखनिधि के सान्निध्य में बुधवार को जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ का स्थापना दिवस मनाया गया। इस अवसर पर एक भाषण प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया। भाषण प्रतियोगिता और पुरस्कार वितरण-  श्री सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट और अखिल भारतीय खरतरगच्छ युवा परिषद की बीकानेर इकाई द्वारा सकल श्रीसंघ के सहयोग से आयोजित इस भाषण प्रतियोगिता में प्रतिभागियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। प्रथम स्थान: श्रीमती खुशबू जयंत कोचर, द्वितीय स्थान: श्रीमती शर्मिला खजांची, तृतीय स्थान: धवल नाहटा रहे।

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विजय कोचर (वंदे मातरम मंच), आशा सुराणा और जागृति खजांची को प्रोत्साहन पुरस्कार दिए गए। ये पुरस्कार वरिष्ठ श्रावक महादेव सुराणा, श्रीमती पुष्पा बोथरा, पारस बोथरा, हस्तीमल सेठी और अखिल भारतीय खरतरगच्छ युवा परिषद की बीकानेर इकाई अध्यक्ष अनिल सुराणा ने प्रदान किए। अखिल भारतीय खरतरगच्छ युवा परिषद की बीकानेर इकाई के उपाध्यक्ष कमल सेठिया ने बताया कि आगामी कार्यक्रमों में जैन धर्म में उपयोग होने वाले चारित्र उपकरणों की बच्चों की फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता भी आयोजित की जाएगी।

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गणिवर्य मेहुल प्रभ सागर जी के प्रवचन
गणिवर्य श्री मेहुल प्रभ सागर जी ने अपने प्रवचन में खरतरगच्छ की परंपरा को “धर्म, दर्शन, दया का संगम” और “अनुपम गाथा” बताया। उन्होंने कहा कि दादा गुरुओं सहित अनेक आचार्य, उपाध्याय और साधु-साध्वीवृंद तथा श्री संघ ने त्याग, तप, साधना, आराधना और भक्ति से खरतरगच्छ की परंपरा को एक हजार साल से अधिक समय से समृद्ध किया है। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी गच्छ की परंपराओं को आगे बढ़ाया। गणिवर्य ने सभी को ज्ञान, दर्शन और तप की आराधना करने वाले गच्छ और समुदायों का सम्मान करने तथा एक हजार साल से अधिक प्राचीन खरतरगच्छ की परंपरा पर गौरव करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हमें अतीत से प्रेरणा लेकर गच्छ को आगे बढ़ाना चाहिए।

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