12 वर्षीय पर्व सेठिया ने पूरी की 8 दिन की निराहार तपस्या, समाज ने किया अभिनंदन



झज्जु/जयपुर, 4 अगस्त। झज्जु निवासी और जयपुर प्रवासी ललित जैमिनी सेठिया के 12 वर्षीय पुत्र पर्व सेठिया ने 8 दिन का निराहार तप सफलतापूर्वक पूर्ण किया है। पर्व, जो गंगाशहर निवासी जेठमल-मधु छाजेड़ के दोहिता हैं, ने अणुविभा केंद्र मालवीय नगर में शासनगौरव साध्वीश्री कनकश्री जी के सान्निध्य में अपने तप का प्रत्याख्यान किया। साध्वीश्री कनकश्री जी ने की तप की अनुमोदना
तप की अनुमोदना करते हुए साध्वीश्री कनकश्री जी ने जैन धर्म में निराहार तप के महत्व को बताया। उन्होंने कहा कि यह तप आत्म शुद्धि के साथ-साथ शरीर शुद्धि, भाव शुद्धि और अन्य अनेक लाभ प्रदान करता है। साध्वीश्री ने इस छोटी उम्र में तप के प्रति पर्व के भावों को परिवार के धार्मिक संस्कारों का परिचायक बताया। पर्व के अठाई तप से प्रसन्न पारिवारिक जनों ने मधुर गीतिकाएँ प्रस्तुत कीं, जबकि साध्वी वृंद ने प्रेरक गीत गाकर तपस्वी बालक को प्रोत्साहित किया और उनकी तप की भावना निरंतर बढ़ती रहे, इसकी कामना की। तेरापंथी सभा जयपुर के सहमंत्री श्री सुरेश जी बरडिया, मुमुक्षु भीकमचंद नखत व वरिष्ठ श्रावक मर्यादा कोठरी ने तपस्वी को साहित्य और दुपट्टा भेंट कर वर्धापित किया।




मुनिश्री तत्वरूचि जी ” तरुण ” के सान्निध्य अभिनंदन


भिक्षु साधना केंद्र जयपुर में मुनिश्री तत्वरूचि जी के सान्निध्य में भी पर्व सेठिया के 8 दिन के निराहार तप के उपलक्ष्य में अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया। मुनिश्री ने तपस्या और अनुमोदना के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि तप केवल शारीरिक कष्ट या साधना का नाम नहीं है, बल्कि यह इच्छाशक्ति, आत्म-नियंत्रण और एक महान लक्ष्य के प्रति अटूट निष्ठा का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि यह वह अग्नि है जिसमें व्यक्ति अपने भीतर की अशुद्धियों को जलाकर कुंदन की तरह निखरता है। आध्यात्मिक उन्नति के लिए ऐसी तपस्या अद्वितीय और वंदनीय है।
मुनिश्री ने आगे कहा कि तपस्या के मार्ग पर चलना आसान नहीं होता, इसमें कई बाधाएँ और चुनौतियाँ आती हैं। लेकिन जो इन पर विजय प्राप्त कर अपनी तपस्या पूर्ण करते हैं, वे वास्तव में वंदन के पात्र होते हैं। उनकी साधना यह प्रेरणा देती है कि संयम और अनुशासन ही किसी भी बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने की कुंजी हैं।
समाज ने दी शुभकामनाएं
तेरापंथी सभा के अध्यक्ष , महिला मंडल अध्यक्ष और ज्ञानशाला के प्रभारी ने पर्व को पताका पहनाकर और साहित्य भेंट कर सम्मानित किया। वक्ताओं ने अपने उद्बोधन में पर्व सेठिया को उनकी तपस्या के लिए अभिनंदन किया, जिसने न केवल उन्हें शुद्ध किया है, बल्कि सभी को प्रेरणा भी दी है। उन्होंने कहा कि पर्व की यह साधना सिखाती है कि जीवन की हर चुनौती का सामना दृढ़ता और संयम से कैसे किया जा सकता है, और यह याद दिलाती है कि सच्ची सफलता आंतरिक शक्ति और मानसिक शांति में निहित है। सेठिया और छाजेड़ परिवार की महिलाओं ने भी गीतिकाएँ प्रस्तुत कर पर्व का अभिनंदन किया।