निराला प्रगतिशील चेतना के कवि और छायावाद की कालजयी शक्ति



बीकानेर, 12 अक्टूबर । अजित फाउण्डेशन द्वारा अपने साहित्यिक कार्यक्रम ‘हथाई’ के तहत, सुप्रसिद्ध कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में युवा साहित्यकार आनन्द पुरोहित ‘मस्ताना’ ने निराला के साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि निराला प्रगतिशील चेतना के कवि थे, जिनकी कविताओं में हमें छायावाद का विशिष्ट रूप देखने को मिलता है।




संघर्षमय जीवन और रचनाएं: पुरोहित ने बताया कि जब निराला ने लिखना शुरू किया, तब साहित्य जगत में राष्ट्रभक्ति की कविताओं का प्रचलन अधिक था, जिसके कारण उनकी रचनाओं को शुरुआत में कम स्थान मिला। हालांकि, उन्होंने अपनी कलम की ताकत से साहित्य को कई कालजयी रचनाएं दीं। उनका व्यक्तिगत जीवन भी बहुत संघर्षमय रहा।



सामाजिक लेखन: उनकी रचनाएं छायावाद से प्रगतिवाद की ओर अग्रसर रहीं। उन्होंने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं में महिला शोषण एवं पूंजीवाद जैसे ज्वलंत सामाजिक मुद्दों को भी उठाया।
कविता का मर्म और सीख
संस्था समन्वयक संजय श्रीमाली ने संस्था की गतिविधियों की जानकारी देते हुए कहा कि निराला जैसे साहित्यकारों की काव्य रचनाएं पढ़कर यह सीख मिलती है कि उन्होंने जीवन में जो कुछ देखा, उसे अपने लेखन के माध्यम से समाज एवं साहित्य को दिशा देने में इस्तेमाल किया। आनन्द छंगाणी ने श्रोताओं से आह्वान किया कि हमें कविता को आत्मसात करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कविता के मर्म को समझे बिना हम न तो लिख सकते हैं, और न ही अपनी समझ विकसित कर सकते हैं।
निराला की प्रसिद्ध रचनाओं का पाठ
कार्यक्रम में कई प्रतिभागियों ने निराला की कालजयी रचनाओं का वाचन किया। प्रेम कुमार ने निराला की पुत्री के निधन पर लिखी गई उनकी प्रसिद्ध शोकगीत “सरोज स्मृति” का वाचन किया। इसके अलावा, रेखा ने “गीत गाने दो मुझे…”, गौरव ने “वह आता दो टूक….”, अफसाना ने “बांधो ना नांव इस ठांव….”, अंजलि ने “अभी न होगा मेरा अंत…”, प्रियांशी ने “बादल गरजे…”, तनिष्का ने “जुंही की कली…” एवं हिमांषु ने “करते रहो सौ-सौ हवन…” सुनाकर सभी का मन मोह लिया।
