पंच परमेष्ठी में आचार्य पद जिन शासन की धुरी – गणिवर्य मेहुल प्रभ सागर



बीकानेर, 9 अक्टूबर। गणिवर्य मेहुल प्रभ सागर म.सा. ने गुरुवार को रांगड़ी चौक के सुगनजी महाराज के उपासरे में अपने चातुर्मासिक प्रवचन में पंच परमेष्ठी में आचार्य पद को जिन शासन की धुरी (Axis) बताया।
आचार्य पद का महत्व
गणिवर्य ने आचार्य के महत्व को समझाते हुए कहा कि आचार्य ही चतुर्विद संघ (साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका) को धर्म का मर्म समझाते हैं। वे मुनियों और साध्वियों को दीक्षा और शिक्षा देते हैं, उन्हें कषायों से दूर रखते हैं, और मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं। जैनाचार्य स्वयं श्रेष्ठ आचार (आचरण) का पालन करते हैं और दूसरों से भी करवाते हैं। वे पाँच महाव्रतों (सत्य, अहिंसा, अचौर्य, अपरिग्रह व ब्रह्मचर्य), ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की स्वयं पालना करते हुए दूसरों से करवाते हैं। उन्होंने आचार्य पद की तुलना मानव शरीर में नाक इंद्रिय से की, जैसे नाक श्वास लेने में और व्यक्ति को जिंदा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, उसी तरह आचार्य भगवंत संघ, शासन, समाज और चतुर्विद संघ को क्रियाशील रखने का प्रमुख कार्य करते हैं।
गणिवर्य ने कहा कि आचार्य भगवंत का पद पंच परमेष्ठी में राजा के समान है, और वे पिछले 21 हजार वर्षों से भगवान महावीर स्वामी के शासन को बढ़ाने में महती भूमिका निभा रहे हैं। आचार्य तीर्थंकर और तीर्थ का प्रतिनिधित्व करते हैं।




इस अवसर पर, वरिष्ठ श्रावक शांति लाल कोठारी (उदासर) और खरतरगच्छ युवा परिषद के वरिष्ठ सदस्य मोहित धारीवाल ने इंजीनियर अमर सिंह वर्मा का अभिनंदन किया।



