अर्द्धांगिनी से सर्वाङ्गिनी बनी प्रेक्षा – श्रेयांश की एक नई सोच की प्रेरक पहल


(जैन लूणकरण छाजेड़)भारतीय समाज में विवाह केवल दो आत्माओं का मिलन नहीं, बल्कि दो परिवारों, परंपराओं और संस्कृतियों का संगम होता है। यह संबंध जीवनभर के साथ का प्रतीक माना जाता है। किंतु जब नियति किसी स्त्री के जीवनसाथी को छीन लेती है, तब समाज उस स्त्री के जीवन को एक अधूरी गाथा मानकर छोड़ देता है। ऐसे समय में अगर कोई परिवार उस अधूरी गाथा को फिर से पूर्णता प्रदान करने का साहस करे, तो वह घटना केवल व्यक्तिगत नहीं रह जाती — वह सामाजिक चेतना का प्रतीक बन जाती है। श्रेयांश पुत्र सुशील जी घोसल, फारबिसगंज ने प्रेक्षा पुत्री मांगीलाल छाजेड़ मुम्बई – गंगाशहर व मनोज बैद , कोलकाता से विवाह करके सामजिक सोच का नया इतिहास रचा है। हाल ही में 8 जून 2025को फारबिसगंज में जैन संस्कार विधि के अंतर्गत संपन्न हुआ श्रेयांश और प्रेक्षा का विवाह ऐसा ही एक प्रेरक उदाहरण बना। यह विवाह केवल एक पुनर्विवाह नहीं, बल्कि एक नवचेतना का उत्सव था — जिसमें प्रेक्षा ने नारी गरिमा की नई परिभाषा गढ़ी।




अर्द्धांगिनी से सर्वाङ्गिनी बनने की यात्रा
प्रेक्षा पहले छाजेड़ परिवार की बहू थीं। जीवन की अनचाही घटनाओं के कारण पति वियोग हो गया, परंतु छाजेड़ परिवार ने उन्हें ‘अतीत की छाया’ मानकर हाशिये पर नहीं डाला, बल्कि बेटी का दर्जा देकर उनके भविष्य को नए अर्थ दिए। यही वह क्षण था जब वे केवल किसी की अर्द्धांगिनी नहीं रहीं — वे एक ऐसी नारी बनीं, जो संस्कार, सम्मान और आत्मनिर्भरता के साथ अपने जीवन की नई शुरुआत कर रही थीं।इस ऐतिहासिक विवाह ने समाज को एक गूढ़ संदेश दिया — कि स्त्री सिर्फ एक भूमिका नहीं, एक पूर्ण व्यक्तित्व है, जो परिस्थितियों से ऊपर उठकर जीवन को फिर से जी सकती है, यदि परिवार व समाज साथ दे।


जैन संस्कार विधि: परंपरा में प्रगतिशीलता का समावेश
इस विवाह की एक और विशेषता रही कि इसे जैन संस्कार विधि के अनुसार संपन्न किया गया। आचार्य श्री तुलसी द्वारा आरंभ की गई यह विधि बाह्य आडंबरों से परे, सादगी, संयम और आत्मचिंतन पर केंद्रित होती है। यह विधि जीवन के प्रत्येक महत्वपूर्ण पड़ाव को आध्यात्मिक अनुशासन और नैतिक मूल्यों से जोड़ती है। प्रेक्षा और श्रेयांश का विवाह उसी भावना के अनुरूप, दिन के उजाले में, सीमित व्यंजनों और संयमित आयोजन के साथ संपन्न हुआ — जहाँ प्रदर्शन से अधिक संस्कारों की गूंज सुनाई दी।विवाहोत्सव के दिनों में सामयिक का भी आयोजन रखा गया।
समाज को एक दिशा देने वाली घटना
इस घटना ने जैन समाज ही नहीं, पूरे भारतीय समाज को सोचने पर विवश किया है — क्या हम पुनर्विवाह को आज भी मान्यता की दृष्टि से देखते हैं, या अब समय आ गया है कि हम इसे एक मानवीय अधिकार और गरिमा का प्रश्न मानें ? मेरी सोच में तो यह मानवीय अधिकार है। इस विवाह समारोह में छाजेड़, बैद, नाहटा , सामसुखा, घोसल , पारख व अन्य परिवारों की उपस्थिति यह दर्शाती है कि जब परिवार साथ होते हैं, तो रूढ़ियाँ टूटती हैं और इतिहास रचता है।
नवाचार की छाया में परंपरा का सम्मान
इस विवाह में संस्कारों को आधुनिक शैली से जोड़ते हुए म्यूजिकल जैन मंत्रों के साथ विवाह संपन्न करवाया गया — यह नवाचार यह दिखाता है कि आधुनिकता और परंपरा साथ चल सकते हैं, यदि दृष्टिकोण सकारात्मक हो।
थार एक्सप्रेस विचार
प्रेक्षा का यह पुनर्विवाह सिर्फ उनके जीवन का नहीं, बल्कि समाज के दृष्टिकोण का भी पुनर्जन्म है। वह अब केवल किसी की अर्द्धांगिनी नहीं, सर्वाङ्गिनी बन चुकी हैं — एक सम्पूर्ण नारी, जो सम्मान, अधिकार और आत्मबल के साथ अपने जीवन को जी रही हैं।
ऐसे साहसी निर्णयों की समाज में अधिक आवश्यकता है। यह विवाह एक प्रेरणा है उन परिवारों के लिए, जो परिस्थितियों से घबराकर चुप रह जाते हैं, और उन स्त्रियों के लिए, जो आत्म-सम्मान के साथ जीवन को फिर से गढ़ना चाहती हैं। छाजेड़ परिवार में इस शताब्दी की यह पहली घटना इतिहास में सवर्णिम अक्षरों से लिखी जानी चाहिए। युगों – युगों तक इसकी गंजु सुनायी देती रहेगी। दोनों के शुभ भविष्य की मंगलकामनाएं।

श्रेयांश व प्रेक्षा का वैवाहिक संस्कार संपन्न
फारबिसगंज, 11 जून। जैन संस्कार विधि से अर्द्धांगनी से सर्वाङ्गनी बनकर प्रेक्षा ने रचा इतिहास। फारबिसगंज निवासी श्रेयांश जैन व मुंबई निवासी प्रेक्षा जैन का पाणिग्रहण संस्कार स्थानीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा तेरापंथ भवन में 8 जून को सानंद संपन्न हुआ। वर-वधु पक्ष की तरफ से घोसल (फारबिसगंज ), छाजेड़ ( मुम्बई – गंगाशहर ) व बैद (कोलकाता ) परिवार के साथ, तेरापंथ महासभा के संरक्षक जैन लूणकरण छाजेड़ ,अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के महामंत्री अमित नाहटा व पदाधिकारी भी इस पाणिग्रह संस्कार के साक्षी बने।
तेरापंथ धर्मसंघ प्रगतिशील धर्म संघ है।आचार्य श्री तुलसी ने सामाजिक समारोह व संस्कारों को जैनत्व के संस्कारों से सम्पन्न करवाने की विधि का शुभारम्भ करवाया। अब गृह प्रवेश , नामकरण , विवाह , तपस्या सम्पन्न व अंतिम संस्कार आदि अवसरों को जैन संस्कार विधि से किये जा रहें हैं। जैन संस्कार विधि को अपना कर व्यक्ति अपने जीवन शैली को एक नया रूप दे सकता है.तेरापंथ धर्मसंघ के नवमें आचार्य गणाधिपति आचार्य श्री तुलसी की बहुमूल्य व जैनत्व को जीवन में जागृत करने की देन है जैन संस्कार विधि ,जो व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी संस्कारों में उपयोगी साबित होती है. बाह्य कर्मकांडों को छोड़कर जीवन में सादगी व संस्कारों को जीवित रखना जैन संस्कार विधि का प्रमुख उद्देश्य है। श्रेयांस व प्रेक्षा का जैन संस्कार विधि से हुए वैवाहिक कार्यक्रम के समय आयोजित भोज में खाद्य पदार्थों की सीमा 21 रखी गयी व जमीकंद का प्रयोग वर्जित रहा. इस विधि के तहत सादगी पूर्ण सभी कार्यक्रम दिन में ही संपादित किए जाते हैं.

विवाह समारोह का कार्यक्रम में छाजेड़ परिवार
तेरापंथ महासभा के संरक्षक व प्रेक्षा ध्यान पत्रिका के संपादक जैन लूणकरण छाजेड़ , उपासक श्रेणी के राष्ट्रीय संयोजक सूर्य प्रकाश श्यामसुखा,अखिल भारतीय तेरापंथ युवा परिषद के महासचिव अमित नाहटा व महासभा के कार्यकारिणी सदस्य मनोज भंसाली , निर्मल मरोठी सहित समाज के कई श्रावकों की गौरवमय उपस्थिति ने इस कार्यक्रम की ओर शोभा बढ़ा दी। स्थानीय सभा अध्यक्ष महेंद्र बैद ने नव दंपति के भावी जीवन की शुभकामनाएं दी व उनके आध्यात्मिक व सुख समृद्धि से ओत प्रोत जीवन की मंगलकामनाएं की। इस अवसर पर नेपाल बिहार सभा के अध्यक्ष चैनरूप दुगड़, महासभा के बिहार प्रभारी राजेश पटावरी,महासभा के संवाहक नेमचंद बैद, पूर्व उपाध्यक्ष अनूप बोथरा, निर्मली से आए हुए जैन संस्कारक नवरत्न बैगानी व कटिहार से आए हुए वीरेंद्र संचेती का जिन्होंने इस पाणिग्रहण संस्कार को जैन मंत्रों के साथ म्यूजिकल थीम पर बहुत ही सुंदर व व्यवस्थित ढंग से विवाह संपन्न करवाया. स्थानीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष आशीष गोलछा ने कहा कि जैन संस्कार विधि के अंतर्गत पाणिग्रहण संस्कार को म्यूजिकल थीम देकर जैन संस्कारकों ने एक नया रूप देने की कोशिश की है. यह भी विश्वास जताया कि भविष्य में अधिक से अधिक जैन परिवारों में जैन संस्कार विधि के द्वारा ही सभी अपने मांगलिक कार्य संपादित किये जाएंगे।

विवाहोत्सव में सूरजमल जी,विमल जी ,निर्मल जी व सुशील जी ,राज कुमार जी , पीयूष, दिनेश, आलोक, डॉ लोकेश, दीपक, नवीन, पार्थ ,भूमिका आलोक, भावीश घोसल , अल्पा बैद , मेजर मेजर खुशबू – नमन भट्ट ,बछराज जी गिरिया – कोयंबटूर, महेंद्र सेठिया – दिल्ली, दीपक पटवारी – कोलकाता, राजेश, यश पारख- दिल्ली, कमल जी बैद, विनीता – मनोज , प्रकाश जी , नितिन बैद , सुरेन्द्र – संगीता सामसुखा, अनीता – विनय जी चौरड़िया – कोलकाता ,सूर्यप्रकाश – फूल सामसुखा लुधियाना, विमल – मंजू सेठिया- बुरहानपुर , गौतम पुगलिया,विमला देवी ,जेठमल- मधु , पवन- ममता , धीरेन्द्र, रिषभ छाजेड़ , बच्छराज- विजयश्री भूरा- गंगाशहर ,सुमन , लीलादेवी , प्रभा , किशोर सेठिया , नेमचन्द व श्रीमती चोपड़ा गुलाबबाग , फारबिसगंज परिषद से आशीष गोलछा, पंकज नाहटा, ऋषभ डागा, ऋषभ सिंघी, हर्ष मालू, पीयूष डागा आदि सदस्यों ने पूरी वैवाहिक विधि में ना सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई अपितु पूरे कार्यक्रम में संस्कारक के साथ बने रहे व वर-वधु एवम दोनों परिवारों से लिखित में पंजीकृत प्रमाण पत्र पर सहमति भी ली गयी ।में
वधु पक्ष से जैन लूणकरण छाजेड़ ने कहा आज से 40 वर्ष पूर्व मांगीलाल छाजेड़ व मंनोहरी सामसुखा का विवाह भी जैन संस्कार विधि से गंगाशहर में सम्पन्न हुए थे।उन्होंने कहा कि छाजेड़ परिवार बहु को बेटी का दर्जा देता है इसका जीता जागता प्रमाण यह विवाह समारोह है की परिस्थितिवश नियति को स्वीकार करके आवश्यकता पड़ने पर अपनी लाडली बहु प्रेक्षा कोआज बेटी बनाकर उसका विवाह सम्पन्न करवाया। इस निर्णय से परिजनों पर गौरव है।