तेरापंथ भवन में विकास महोत्सव का आयोजन

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गंगाशहर, 1 सितंबर। उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमलकुमार जी सेवा केन्द्र व्यवस्थापिका साध्वीश्री विशद प्रज्ञाजी व लब्धियशाजी के पावन सान्निध्य में विकास महोत्सव का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुनिश्री कमलकुमार जी ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि अष्टमाचार्य श्री कालूगणी की कृपा से हमें नवमाधिशास्ता आचार्यश्री तुलसी प्राप्त हुए। जिन्होंने अपनी गहरी सूझ बूझ से धर्मसंघ को नये नये आयाम प्रदान किये। जिससे केवल साधु साध्वी , श्रावक श्राविकाओं का ही नहीं जन जन का कल्याण हो सके। उनके द्वारा प्रदत्त आयाम चिरस्थायी है। कन्यामंडल, किशोर मंडल, युवक परिषद्, महिला मंडल, तेरापंथ सभा, अणुव्रत समिति, ज्ञानशाला प्रेक्षाध्यान, जैन विश्वभारती यूनिवर्सिटी आदि ऐसे कार्य जिससे व्यक्तित्व का निर्माण हो सके। परमार्थिक शिक्षण संस्था मुमुक्षुओं की खदान है। आगम सम्पादन, जैन भारती विज्ञप्ति, प्रेक्षाध्यान, अणुव्रत पत्रिका, तेरापंथ टाइम्स आदि ऐसी पत्र पत्रिका हैं जिससे समाज का आपसी सम्पर्क पूज्यवरों कि संवादो की प्रामाणिक जानकारी हो सके। अणुव्रत साहित्य प्रेक्षाध्यान साहित्य, जीवन विज्ञान साहित्य, कथा साहित्य, गीत साहित्य अनेक विद्याओं में प्रचुर साहित्य का सम्पादन लेखन का कार्य हुआ। विकास महोत्सव आचार्य श्री तुलसी के आयामों को स्मृति करने के लिए मनाया जाता है। यह उत्सव हमें आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की दूर दर्शिता से प्राप्त हुआ ।

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सेवा केन्द्र व्यबस्थापिका साध्वी विशद्प्रज्ञा जी ने कहा आचार्य तुलसी की विकास यात्रा अनेक रूपों में आगे बढ़ी और अनेकों का उद्धार करती हुई दुनिया मे अमर हो गई। साध्वी लव्धियशा ने विकास शब्द को व्याख्यायित करते हुए कहा- वि यानि विवेक, का अर्थात कार्यशील, स अर्थात् सहनशील। आचार्य तुलसी का जीवन इन तीनों की समन्वीति थी। साध्वी मननयशा ने कहा आचार्य तुलसी का जीवन रोशनी की मीनार थी। उन्होंने अपने ज्ञान प्रकाश से दुनिया को आलोकित किया। साध्वीवृन्द ने सामुहिक गीतिका प्रस्तुत की। कार्यक्रम में मुनिश्री श्रेयांसकुमार , मुनिश्री मुकेशकुमार ने गायकों के साथ गीत का संगाना किया। सभा के मंत्री जतन संचेती , तेरापंथ न्यास से जतनलाल दुग्गड़, शांतिप्रतिष्ठान के मंत्री दीपक आंचलिया, युवक परिषद अध्यक्ष ललित राखेचा, तेरापंथ प्रोफेशनल फोर्म के अध्यक्ष रतन छलानी, तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्ष प्रेम बोथरा ने भी विचार प्रकट किये। ज्योति बोचरा ने 8 आशादेवी झाबक ने 15 तारादेवी बैद ने 50 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

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